हर हाल में हर दर्द में जिए जा रहा हूँ मैं
आंधी से कुछ तो सोच कर टकरा रहा हूँ मैं
मुझ पर हंसों ना तुम, मेरी हिम्मत की दाद दो
ज़र्रा हूँ और पहाड़ से टकरा रहा हूँ मैं
खंज़र पे मेरे खून है मेरे ही भाई का
इस बार जंग जीत के पछता रहा हूँ मैं
मैं राह का चराग हूँ ,सूरज तो नहीं हूँ
जितनी मेरी बिसात है काम आ रहा हूँ मैं
( अनजान शायर )
आंधी से कुछ तो सोच कर टकरा रहा हूँ मैं
मुझ पर हंसों ना तुम, मेरी हिम्मत की दाद दो
ज़र्रा हूँ और पहाड़ से टकरा रहा हूँ मैं
खंज़र पे मेरे खून है मेरे ही भाई का
इस बार जंग जीत के पछता रहा हूँ मैं
मैं राह का चराग हूँ ,सूरज तो नहीं हूँ
जितनी मेरी बिसात है काम आ रहा हूँ मैं
( अनजान शायर )