Wednesday 12 October 2011

           जिंदगी 

आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु को देखा जिंदगी!
अश्रु जल आँखों में था, बहने से रोका जिंदगी !!
क्यूँ हर इन्सान तुझे अच्छा लगे है रोता, जिंदगी !
देती क्यूँ हर इंसा की उम्मीद को तू धोखा ,जिंदगी!!
क्यों तू इतनी कठोर है ,पत्थर  सी  है  तू   जिंदगी!
क्यों कोई सनेह अंकुर तुझ में ना फुटा    जिंदगी!!
हर पल हर छन दर्द तू सबको ही देती जा रही!
काश के तेरा कोई अपना भी रोता,  जिंदगी!!
बन कर कराल कालिका,तू  मौत का नृत्य करे!
कोई शिव आकर ,काश तुझे रोक लेता जिंदगी !! 
वे आँखे महागाथा सी ,लम्बी कथा सुनती 
निशब्द, किताबी आँखे वे,कितना कुछ कह जाती 

उलझे विचारों सी लगती, कभी सवेदना बन जाती 
कभी बादल की तरह उमड़ती ,कभी चिंगारी हो जाती 
वे आँखे महागाथा सी , लम्बी कथा सुनती......

कभी किलकती शिशु सी,कभी यौवन  सी इठलाती 
जीवन संध्या जीने वालों सी, कभी एकाकी  हो जाती
वे आँखे महा गाथा सी ..............

कभी कथानक, कभी संवाद ,अनगिनत  चरित्रों का संसार
ख़ामोशी से कहती कुछ कुछ ,रिश्तों की बुनियाद बनती 
वे आँखे महा गाथा सी .............
उठती ,झुकती,मुस्काती कभी इन्द्रधनुष  बन जाती
छुपाये नव  रस रस  कोरों  में, दर्द के   कतरे  छलकती 
वे आँखे महा गाथा सी .............

 ( shankar meena  )