वे आँखे महागाथा सी ,लम्बी कथा सुनती
निशब्द, किताबी आँखे वे,कितना कुछ कह जाती
उलझे विचारों सी लगती, कभी सवेदना बन जाती
कभी बादल की तरह उमड़ती ,कभी चिंगारी हो जाती
वे आँखे महागाथा सी , लम्बी कथा सुनती......
कभी किलकती शिशु सी,कभी यौवन सी इठलाती
जीवन संध्या जीने वालों सी, कभी एकाकी हो जाती
वे आँखे महा गाथा सी ..............
कभी कथानक, कभी संवाद ,अनगिनत चरित्रों का संसार
ख़ामोशी से कहती कुछ कुछ ,रिश्तों की बुनियाद बनती
वे आँखे महा गाथा सी .............
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