Tuesday, 11 October 2011

मित्रता
आओ आकर मिल बैठे हम,शिकवे गिले भूल जाए हम
आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम
ये सनेह की डोरी,प्रेम के बंधन, क्या इन का कुछ मोल नहीं?
मेत्रि और मित्रता जैसा जग मे होता कुछ और नहीं
हे मित्र मित्रता मे होता, कुछ भी अनमेल,बेमेल नहीं
ये सनेह और आत्ममीयता,सच मे है,ये कोई खेल नहीं
नाराज़गी के इस हिम गिरी को, उश्मित सनेह से पिघलाए हम
हम मित्र थे मित्र रहेगे सदा, आओ ये कसम उठाए हम
आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम

1 comment:

  1. आओ आकर मिल बैठे हम,शिकवे गिले भूल जाए हम
    आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम
    ये सनेह की डोरी,प्रेम के बंधन, क्या इन का कुछ मोल नहीं?
    मेत्रि और मित्रता जैसा जग मे होता कुछ और नहीं
    हे मित्र मित्रता मे होता, कुछ भी अनमेल,बेमेल नहीं
    ये सनेह और आत्ममीयता,सच मे है,ये कोई खेल नहीं
    नाराज़गी के इस हिम गिरी को, उश्मित सनेह से पिघलाए हम
    हम मित्र थे मित्र रहेगे सदा, आओ ये कसम उठाए हम
    आत्मीयता का वरण करे,देहाभिमान को भुलाए हम
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    koi bhi shabd kum padenge, iske upar koi bhi comment karneke liye. KHUBSURAT, ATI PYAARI KAVITA.

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