Monday 24 October 2011

असली दिवाली

हृदय के दीप में प्रेम का तेल पा कर 
जब प्रीत की ज्योत जल जाती है 
असली दिवाली तो वो ही कहलाती है

किसी गैर की खुशियों  में  हमारी   भी 
आँखे ख़ुशी से डबडबाती,छलक जाती  है
असली दिवाली तो वो  ही  कहलाती   है

आदर  और  प्रेम  पाकर  बच्चो  से 
नानी,दादी जब  भाव विभोर हो जाती है
असली दिवाली तो  वो ही  कहलाती  है 

( अवन्ती सिंह ) 


धनतेरस पर हम सब ही लोग खरीदारी करते है ,इसी विषय पर एक हलकी फुलकी सी कविता लिखी है
आप सब की नज़र कर रही हूँ.....


 धनतेरस पर, सुनो  प्रिय  मुझे तुम  सोने का हार ला दो 
२ झुमके  एक  अंगूठी  और  चूड़ियाँ   दो   चार   ला  दो  
शर्ट तुम्हारे पास बहुत है,बच्चो के पास भी सब चीजे है 
मैं  ने  ही  अपने गहने जाने  कब  से  नहीं  खरीदे   है 
अब तो अपनी गृहलक्ष्मी के जीवन में थोड़ी बहार ला दो 
धनतेरस पर ,सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार .........
कभी बरतन कभी  कपडे तो हम हर धनतेरस को लाते है
पर  मेरे  दिल  के  अरमां  तो सदा  दिल  में रह जाते है 
और गिफ्ट नहीं मांगूंगी कभी ,गर मुझे तुम  ये उपहार ला दो 
धनतेरस पर,सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार.........
मेरी सभी सहेलियां अक्सर गहने बनवाती है
उन्हें पहन घर मेरे आती, इठलाती  मानों  मुझे चिढाती   है
शौक नहीं गहनों का मुझे,उनके मुंह बंद करने का हथियार ला दो 
धनतेरस पर, सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार .......


दीपावली में दिल नहीं दिए जलाइये

फुलझड़ी  सी मुस्कान चेहरे पर जगाइए

किसी  आंगन में गर दिखे  अँधेरा

कुछ रौशनी, कुछ मुस्कांनें  दे  आइये

सब मित्रों को शुभकामना सन्देश पहुचाइए

दुश्मनों से  भी प्यार से हाथ और दिल मिलाइए

मिलावटी है मिठाई जरा कम ही खाइए

मन की मिठास को सब में बाँट आइये

दिवाली पर ही  होता माँ लक्ष्मी का जन्म दिवस

भाव  के उपहार दीजिये उन्हें , झोली मत फैलाइए

दिवाली पर दिल नहीं दिए.............