हृदय के दीप में प्रेम का तेल पा कर
जब प्रीत की ज्योत जल जाती है
असली दिवाली तो वो ही कहलाती है
किसी गैर की खुशियों में हमारी भी
आँखे ख़ुशी से डबडबाती,छलक जाती है
असली दिवाली तो वो ही कहलाती है
आदर और प्रेम पाकर बच्चो से
नानी,दादी जब भाव विभोर हो जाती है
असली दिवाली तो वो ही कहलाती है
( अवन्ती सिंह )
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