Monday, 24 October 2011



धनतेरस पर हम सब ही लोग खरीदारी करते है ,इसी विषय पर एक हलकी फुलकी सी कविता लिखी है
आप सब की नज़र कर रही हूँ.....


 धनतेरस पर, सुनो  प्रिय  मुझे तुम  सोने का हार ला दो 
२ झुमके  एक  अंगूठी  और  चूड़ियाँ   दो   चार   ला  दो  
शर्ट तुम्हारे पास बहुत है,बच्चो के पास भी सब चीजे है 
मैं  ने  ही  अपने गहने जाने  कब  से  नहीं  खरीदे   है 
अब तो अपनी गृहलक्ष्मी के जीवन में थोड़ी बहार ला दो 
धनतेरस पर ,सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार .........
कभी बरतन कभी  कपडे तो हम हर धनतेरस को लाते है
पर  मेरे  दिल  के  अरमां  तो सदा  दिल  में रह जाते है 
और गिफ्ट नहीं मांगूंगी कभी ,गर मुझे तुम  ये उपहार ला दो 
धनतेरस पर,सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार.........
मेरी सभी सहेलियां अक्सर गहने बनवाती है
उन्हें पहन घर मेरे आती, इठलाती  मानों  मुझे चिढाती   है
शौक नहीं गहनों का मुझे,उनके मुंह बंद करने का हथियार ला दो 
धनतेरस पर, सुनो प्रिय मुझे तुम सोने का हार .......


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