Thursday, 1 December 2011

बातें करतें है

वो जब मुझ को ना देखें तब  भी  , नजर क्यूँ   बार   बार   झुकती है ?
ह्या की लाली आके गालों  पर ,उनके    तकनें    की   राह  तकती  है

दिल में तो लाखों बातें चलती है ,जुबां तक आ  के फिर  क्यूँ रूकती है
धडकने तेज होती जाती है ,दिल     में   एक पीर   सी   भी   उठती  है

होठ थरथराते है, चुप ही  रहतें है ,उन के आगे हम 'बुत' ही रहते है
साँसें  चलना भी भूल जाती है ,नज़रें  धरती में   गड सी   जाती   है

मैं उन की खामोशियों को सुनती हूँ,वो मेरी खामोशियों को   सुनते है
रात भर नींद अब आती ही नहीं, दिन भर अब ख्वाब ,ख्वाब बुनते है

बात गर हम शुरू कर भी दें तो , दुनिया, जहाँ   की  बातें    करते  है
कौन कैसा है ,वो तो वैसा है, जाने कहाँ   कहाँ   की   बातें    करते है

अपनी बातों की बात छोड़ कर हम , धरती आसमाँ की बातें करते है
जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,और हम यहाँ वहां की बातें करते है

अब जो मिलना हुआ तो कह देगें ,आओ   अब   अपनी  बातें   करते है
कैसे कटते  है दिन तुम्हारे बिन,उन , सुबह-शामों  की  बाते   करते  है......
 







5 comments:

  1. अपनी बातों की बात छोड़ कर हम ,
    धरती आसमाँ की बातें करते है
    जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,
    और हम यहाँ वहां की बातें करते है

    bahut umdaa

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  2. अपनी बातों की बात छोड़ कर हम , धरती आसमाँ की बातें करते है
    जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,और हम यहाँ वहां की बातें करते है


    बहुत बढ़िया ..... यही सच हम सबके जीवन का ..... यूँ दूसरों की बातों की उधेड़बुन में ही लगे रहते हैं.....

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  3. अखतर सर ,राजेन्द्र जी, मोनिका जी आप सब का दिल की गहराइयों से शुक्रिया ......

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  4. अपनी बातों की बात छोड़ कर हम , धरती आसमाँ की बातें करते है
    जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,और हम यहाँ वहां की बातें करते है

    ...बहुत सुन्दर कविता...मीठी सी भावनाए लिए.

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