Wednesday 30 November 2011

एक वोह ज़िन्दगी से प्यारा जो

एक वोह ज़िन्दगी से प्यारा जो
एक  मैं  ज़िन्दगी  से   हारा   जो.

तुम हो जो ख्वाब ख्वाब जीते हो
मैं तो वोह, सारे ख्वाब हारा जो.

ले   गया  लुट कर     मेरा   सूरज
नाकसो कस  का था सहारा जो.

वोह भी अब रौशनी से डरता है
था कभी सुब्ह का सितारा  जो.

आज भी उसके आसरे हैं आप
आज भी    बेकसों    बेचारा जो.

मैं न कहता था वोह किसी का नहीं
कभी    मेरा   कभी   तुम्हारा   जो.

(नाकसो  कस = each and every body)

   --------- akhtar किदवाई

2 comments:

  1. bahut khoob....
    कुछ उर्दू के कठिन शब्दों का अर्थ भी लिख दिया जाये तो पढ़ने वालों को और भी सुविधा होगी...
    सादर.

    ReplyDelete
  2. बहुत उम्दा रचना है अखतर जी ,सभी पंक्तियाँ बहुत गहरे अर्थ लिए है, ये पंक्तियाँ मुझे सबसे अधिक पसंद आईं "मैं न कहता था वोह किसी का नहीं
    कभी मेरा कभी तुम्हारा जो." ......

    ReplyDelete