खुद को जाने कितने ही पर्दों में वो छुपाये बैठे है
और फिर चेहरे पर एक मुखौटा भी लगाये बैठे है
कैसे समझेगे और कैसे जानेगे हम,के क्या है वो
झांकती हैं जो मुखौटे से,वो आँखें भी झुकाए बैठे है
हाथों के इशारे से भी तो कुछ समझाते नहीं है
और होठों पर भी चुप के ताले लगाये बैठे है
कब तलग न खोलेगे वो राज़ अपना ,कभी तो हद होगी
उसी हद की आस में ,सर को उनके दर पे झुकाए बैठे है
और फिर चेहरे पर एक मुखौटा भी लगाये बैठे है
कैसे समझेगे और कैसे जानेगे हम,के क्या है वो
झांकती हैं जो मुखौटे से,वो आँखें भी झुकाए बैठे है
हाथों के इशारे से भी तो कुछ समझाते नहीं है
और होठों पर भी चुप के ताले लगाये बैठे है
कब तलग न खोलेगे वो राज़ अपना ,कभी तो हद होगी
उसी हद की आस में ,सर को उनके दर पे झुकाए बैठे है
chehraa par chehraa lagaanaa
ReplyDeleteunkee aadat ho gayaa
mohabbat kaa dikhaavaa karnaa
dastoor ho gayaa
हाथों के इशारे से भी तो कुछ समझाते नहीं है
ReplyDeleteऔर होठों पर भी चुप के ताले लगाये बैठे है
बेहतरीन।
सादर
बहुत सुन्दरता से इंतज़ार लिखा है
ReplyDeleteबधाई......
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उसी हद की आस में ,सर को उनके दर पे झुकाए बैठे है
ReplyDeletevaah bahut khoob.
बहुत ख़ूब!!
ReplyDeletebahut sunder............!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..!
ReplyDeleteहाथों के इशारे से भी तो कुछ समझाते नहीं है
ReplyDeleteऔर होठों पर भी चुप के ताले लगाये बैठे है
कब तलग न खोलेगे वो राज़ अपना ,कभी तो हद होगी
उसी हद की आस में ,सर को उनके दर पे झुकाए बैठे है
.....har tale ka chhabi hoti hai.....kabhi na kabhi raj khulta lazimi hai..
bahut hi khoob kahi aapne..
sundar prastuti
मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन प्रस्तुति ......
ReplyDeleteWELCOME to--जिन्दगीं--
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteअगला शेर मेरी ओर से आपकी भेंट -
ReplyDeleteकब मिलेंगे वो जिनके दिलों में साफ़गोई
हम उनके इंतज़ार में आँखें बिछाए बैठे हैं
आपकी रचना दिल के इतने करीब लगी कि शब्द फूट ही तो पड़े !
बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार ए हैं ...............सभी रचनायें बहुत सुंदर हैं
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