Saturday, 5 November 2011

एक वृक्ष को माध्यम बना कर मैं उन लोगों का दर्द आप सब तक पहुचाना चाहती हूँ जिनकी उंगली पकड़ कर हम चलते है और जब उन्हें हमारे सहारे की जरूरत होती है तो हम अपनी अलग दुनिया बना उस में खो जाते है ,अपनी जड़ों को भूल जाते है हम........


 मैं एक सुखा वृक्ष  हूँ,कई जगह से टुटा वृक्ष  हूँ
लेकिन मेरी शाखाएं  इतनी विशाल है के अभी भी 
 कई राहगीरों को  धुप से बचाता हूँ , छुपाता  हूँ   

मैं तडपता हूँ, रोता हूँ खून के आंसू  लेकिन जला  कर खुद को 
दुनिया वालो को अभी भी  ठण्ड  से  बचाता  हूँ  ,हंसाता  हूँ 

मुझ में अब एक भी अंकुर न फूटेगा ये  तय  है  लेकिन
कई नए  पौधों  के  अभी   भी  मैं घर- बार   चलाता    हूँ 

हुजूम चारों  तरफ  है मेरे, घिरा   हूँ वृक्षों   से  लेकिन,  
अकेला हूँ अभी भी ,अकेलेपन से मैं आज भी घबराता हूँ 

1 comment:

  1. Bahut hi Sundar vichar vyakta kare hai aapne Avantiji. Dhanyawad.

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