Friday, 14 October 2011

मिर्ज़ा ग़ालिब

दर्द से मेरे है ,तुझे को     बेकरारी हाय हाय!
 क्या हुई जालिम तेरी गफलत सआरी हाय हाय!! 
क्यूँ मेरी गम खारगी का तुझ को आया था ख्याल!
दुश्मनी अपनी  थी मेरी दोस्तदारी हाय हाय !!
उम्र भर का तू ने पयमाने वफा बंधा तो क्या !
उम्र को भी तो नहीं है  पायेदारी  हाय  हाय !!
जहर लगती है  मुझे,  आबो  हवाए   जिन्दगी!
यानि तुझ से थी इसे नासाजदारी  हाय हाय!!
शर्मे रुसवाई से जा छुपना जाकर नकाबे ख़ाक में !
खत्म है  उल्फत की तुझ पर पर्दादारी हाय हाय!!
ख़ाक में नामुसे पयमाने मोहोब्बत मिल गए!
उठ गयी दुनिया से राहो रस्मेदारी हाय हाय!!
इश्क ने पकड़ा न था ग़ालिब अभी वहशत का रंग!
रह गया जो दिल में कुछ  सोकेखारी   हाय हाय !!
( मिर्ज़ा ग़ालिब ) 



 

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