तुम यूँ ही मुस्कराते रहो मेरे सामने बैठ कर
मैं प्रीत से भरे नव गीत का निर्माण करूँ
तुम अपने मन की मधुरता बिखरते रहो यूँ ही
मैं उस मधुरता से अपने गीतों में प्रेम भरूं
अपनी आँखों की चमक मुझ तक ऐसे ही पहुचने दो
समेट कर उसे ,उस से मैं शब्दों के लिए कुछ गहने गढ़ूं
तुम्हारे प्रेम की महक, जो घेर रही है मुझे चारों और से
इस से ही तो महकेगी मेरी ये बिना सुगंध की कविता
अभी मत उठो यहाँ से, रुको क्या तुम अब तक नहीं समझे ,
तुम्हारे होने से ही तो बह रही है मुझ में से छन्द और बंधों की सरिता
लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ
मैं प्रीत से भरे नव गीत का निर्माण करूँ
तुम अपने मन की मधुरता बिखरते रहो यूँ ही
मैं उस मधुरता से अपने गीतों में प्रेम भरूं
अपनी आँखों की चमक मुझ तक ऐसे ही पहुचने दो
समेट कर उसे ,उस से मैं शब्दों के लिए कुछ गहने गढ़ूं
तुम्हारे प्रेम की महक, जो घेर रही है मुझे चारों और से
इस से ही तो महकेगी मेरी ये बिना सुगंध की कविता
अभी मत उठो यहाँ से, रुको क्या तुम अब तक नहीं समझे ,
तुम्हारे होने से ही तो बह रही है मुझ में से छन्द और बंधों की सरिता
लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ
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