Friday, 7 October 2011

छोड़ो जाने दो

कुछ खुशियाँ दे सकता था, लेकिन छोड़ो  जाने दो!
क्या क्या कुछ हो सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!!
महफ़िल-ऐ-कफ-ओ-मस्ती  थी ,एक सपनो की बस्ती थी!
दिल उसमे खो सकता था, लेकिन छोड़ो जाने दो!!
रोते रोते रात गयी, रात गयी सो बात गयी!
सोने को सो सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!!
वो चेहरे के दाग नहीं थे,दामन पर कुछ धब्बे थे!
छुप के कहीं धो सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!!
जो खुद भी मासूम हो  वो, मुझ पे पहला वार करे!
इतना कह भी सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!!
कुछ खुशियाँ दे भी सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!
क्या क्या कुछ  हो  सकता था,लेकिन छोड़ो जाने दो!!
 ( AKHTAR ANSAR KIDWAI )

1 comment:

  1. सर , इतनी सुंदर और अर्थपूर्ण ग़ज़ल हम सब के साथ शेयर करने के लिए शुक्रिया....

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