Wednesday, 23 November 2011

बादल

ये    बादल   क्यूँ   यूँ    आवारा    फिरते    है?  क्या   इनका   कभी,  कहीं 
 ठहरने का  मन नहीं  करता?  कोई   घर  नहीं  जंचता  इन्हें  अपने   लिए 


किसी   पहाड़    की  कन्दरा   में    कुछ   दिन    रुक   कर या  किसी आंचल 
की छाँव में ठहर ,अंतहीन सफर की थकान मिटाने की  इच्छा  नहीं   जगी ?


शायद ये   इच्छा   तो  जरुर  जागी   होगी   इन   के  मन   में , लेकिन
पता भी  है  अपनी  मज़बूरी  का , के  कहीं  पर   अधिक   ठहरने    की

इजाजत नहीं है ,मोह के बन्धन   बाँध  कर   अपने    कर्म  का  निर्वाह 
करना कितना मुश्किल होगा ,ये   समझ   आता   है   शायद   इन  को 


अपने   अरमानों   की   लाश   उठाये   ये  निरंतर   चलते  रहते  होगें
ताकि   किसी   के  सूखते   अरमानों   को   अपनी   नमी से सींच सके 

"आवारा बादल"  कह    कर  कोई   भी   ना   करे    अपमान    इनका 
ये तो कर्म योगी है जो खुद को तप की  अग्नि  में तपा कर,सब के जीवन 
 में प्राणों का   संचार करते   है ,खुद को मिटा,  हम सब का उद्धार करते है







6 comments:

  1. बहुत सुन्दर ...

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  2. ये तो कर्म योगी है
    जो खुद को तप की अग्नि में तपा कर,
    सब के जीवन में प्राणों का संचार करते है ,
    खुद को मिटा,हम सब का उद्धार करते है.

    बहुत सुंदर भाव.

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  3. बहुत सुन्दर अवंती जी....

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  4. बादलों का रूप कर्मयोगी बहुत अच्छा लगा ..सुन्दर प्रस्तुति



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  5. .


    अवंती जी


    सुंदर कविता !
    'आवारा बादल' कह कर कोई भी ना करे अपमान इनका
    ये तो कर्म योगी है जो खुद को तप की अग्नि में तपा कर,सब के जीवन
    में प्राणों का संचार करते है , खुद को मिटा , हम सब का उद्धार करते है


    भावपूर्ण कविताओं के लिए आभार !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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