Friday, 25 November 2011

              नव-जीवन 

इन    सूखे      पत्तों      की    हरियाली      अब     खो   चुकी    है 
अब     कुछ      दिन    और      बचे      है     इन       के         पास

कुछ      दिनों     में       ये     सुखेगे    ,   टूटेगे  ,   गिर      जायेगे 
क्या      फिर      ये    परम        शांति           को       पा       जायेगे?

या  जमीन के किसी   कोने   में    पड़े      चिखेगें  ,    चिल्लायेगे   के  
हमे   तो   अभी     भी   पेड    की   वो    कोमल      डाली      भाती   है

डाल   पर   वापस  जा  लगें  ,  ये   इच्छा    रोज   बढती   जाती   है\
अब कौन समझाये  इन   पत्तों को, के   सृष्टि के   नियम   से चलो

टूटने के बाद ,पहले धरती में मिलो,गलों और फिर किसी नव-अंकुर 
की नसों में  बनके  उर्जा बहों , उस   के प्राणों  का  एक  हिस्सा  बनो

तब कहीं  तुम   दोबारा  पत्ते    बनने     का  अवसर   पा    सकते    हो 
वरना तो यूँ ही इस  कोने  में पड़े पड़े बस  रो सकते हो चिल्ला सकते हो. 

3 comments:

  1. बहुत सटीक अभिव्यक्ति...जीवन के शास्वत सत्य की बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

    http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/11/blog-post.html

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  2. prakrati ke rangon se sajaa aapkaa blog aur us par aapkee jeevan chakr kaa parichay karaatee kavitaa
    sukhad abhaas

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  3. सुन्दर गीत...अच्छा लगा यहाँ आकर. 'पाखी की दुनिया' में भी आइयेगा.

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