आज फिर तेरे एक शुष्क पहलु को देखा जिंदगी
अश्रु-जल आँखों में थे, बहने से रोका जिंदगी
हर इंसान की उम्मीद को, तू क्यूँ देती धोका जिंदगी?
क्यूँ तुझे हर कोई, अच्छा लगे है रोता, जिंदगी ?
क्यूँ तू इतनी कठोर है,पत्थर सी लगती जिंदगी ?
क्यूँ कोई स्नेह -अंकुर तुझ में ना फुटा जिंदगी ?
हर क्षण ,हर पल तू दर्द सब को दे रही
काश ,कभी कोई तेरा अपना भी रोता जिंदगी
सदा बन ,कराल-कालिका तू मृत्यु का नर्तन करे
काश कोई शिव आ के तुझ को रोक लेता जिंदगी
अश्रु-जल आँखों में थे, बहने से रोका जिंदगी
हर इंसान की उम्मीद को, तू क्यूँ देती धोका जिंदगी?
क्यूँ तुझे हर कोई, अच्छा लगे है रोता, जिंदगी ?
क्यूँ तू इतनी कठोर है,पत्थर सी लगती जिंदगी ?
क्यूँ कोई स्नेह -अंकुर तुझ में ना फुटा जिंदगी ?
हर क्षण ,हर पल तू दर्द सब को दे रही
काश ,कभी कोई तेरा अपना भी रोता जिंदगी
सदा बन ,कराल-कालिका तू मृत्यु का नर्तन करे
काश कोई शिव आ के तुझ को रोक लेता जिंदगी
बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeletenirantar naye rang
ReplyDeletedikhaatee hai zindgee
sukoon se jeene nahee detee zindgee
वैसे गुलज़ार साहब ने कहा था एक बार,
ReplyDeleteजिंदगी क्या है जानने के लिए
ज़िंदा रहना बहुत ज़रूरी है..
आज तक कोई रहा तो नहीं..
:)