जीवन रूपी पुल के मध्य में खड़े रहना मुझे बहुत भाता है
मध्य में खड़े रहने से दोनों तरफ का दृश्य साफ़ नज़र आता है
दुःख और सुख के बीच की हलकी सी लकीर जब हम को नज़र आने लगती है
तो जिंदगी एक अनसुने राग में, निशब्द गीत गुनगुनाने लगती है
मंजिल किसी एक अंत पर जाकर ही मिलेगी, ये नियम तो नहीं है
जहाँ पहुच कर पूर्णता और शांति उपलब्ध हो जाये, मंजिल तो वही है
सुख और दुःख के मध्य की अवस्था में मैं खुद को आनन्द से भरा पा रही हूँ
इस लिए ठहरी हूँ यहीं , ना इधर जा रही हूँ ना उधर जा रही हूँ
मध्य में खड़े रहने से दोनों तरफ का दृश्य साफ़ नज़र आता है
दुःख और सुख के बीच की हलकी सी लकीर जब हम को नज़र आने लगती है
तो जिंदगी एक अनसुने राग में, निशब्द गीत गुनगुनाने लगती है
मंजिल किसी एक अंत पर जाकर ही मिलेगी, ये नियम तो नहीं है
जहाँ पहुच कर पूर्णता और शांति उपलब्ध हो जाये, मंजिल तो वही है
सुख और दुःख के मध्य की अवस्था में मैं खुद को आनन्द से भरा पा रही हूँ
इस लिए ठहरी हूँ यहीं , ना इधर जा रही हूँ ना उधर जा रही हूँ
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