गर प्राण ,देह को असमय त्याग दें
तो हे भगवन, करना मुझ पे इतनी कृपा
एक नव देह देना मुझ को ,कुछ दिन को सही ,
सभी अधूरे कार्य कर सकूँ ,कुछ अभिलाषाए
पूर्ण कर सकूँ ......
कुछ और देर मुंडेर पर बैठी चिड़ियों के
कलरव गीत का रस पान कर सकूँ
एक और बार सींच सकूँ उन पौधों को
जो मेरे अकस्मात जाने के बाद सूख चले है
कुछ और देर बच्चों की निर्दोष हँसीं सुन लूँ
समेट लूँ ,अपने अंतर में ,उन की सुन्दर छवियाँ
कुछ और देर आत्मीय जनों को अपनी
मुस्कान से सुख शांति प्रदान कर सकूँ
कुछ और देर बैठ सकूँ प्रीतम के पास, कह दूँ वो
सब जो कभी कहा ही नहीं, प्रकट कर दूँ विशुद्ध प्रेम
जिसके सहारे वो अपने अकेलेपन से जूझ पाए
कर पाए जीवन की हर कठिनाई का सामना ,बिना थके .
बूढी माँ को कह तो सकूँ के, दवा टाइम से खाना ,अब
मेरी तरह रोज दवा टाइम से देने शायद कोई न भी आ पाए
प्राणों ने देह ही तो छोड़ी है ,पर उन अभिलाषाओं को
कहाँ छोड़ पाए है जो , अभी तक पल रही है
इस अमर मन में....
(स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )
तो हे भगवन, करना मुझ पे इतनी कृपा
एक नव देह देना मुझ को ,कुछ दिन को सही ,
सभी अधूरे कार्य कर सकूँ ,कुछ अभिलाषाए
पूर्ण कर सकूँ ......
कुछ और देर मुंडेर पर बैठी चिड़ियों के
कलरव गीत का रस पान कर सकूँ
एक और बार सींच सकूँ उन पौधों को
जो मेरे अकस्मात जाने के बाद सूख चले है
कुछ और देर बच्चों की निर्दोष हँसीं सुन लूँ
समेट लूँ ,अपने अंतर में ,उन की सुन्दर छवियाँ
कुछ और देर आत्मीय जनों को अपनी
मुस्कान से सुख शांति प्रदान कर सकूँ
कुछ और देर बैठ सकूँ प्रीतम के पास, कह दूँ वो
सब जो कभी कहा ही नहीं, प्रकट कर दूँ विशुद्ध प्रेम
जिसके सहारे वो अपने अकेलेपन से जूझ पाए
कर पाए जीवन की हर कठिनाई का सामना ,बिना थके .
बूढी माँ को कह तो सकूँ के, दवा टाइम से खाना ,अब
मेरी तरह रोज दवा टाइम से देने शायद कोई न भी आ पाए
प्राणों ने देह ही तो छोड़ी है ,पर उन अभिलाषाओं को
कहाँ छोड़ पाए है जो , अभी तक पल रही है
इस अमर मन में....
(स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )
excellent..
ReplyDeleteशायद ये अभिलाषा हम सबके ह्रदय में कहीं दबी होती है...
काश कि पूरी हो पाती...
Coming straight from heart- like poetry should!!! Good!
ReplyDeleteबूढी माँ को कह तो सकूँ के,
ReplyDeleteदवा टाइम से खाना,
अब मेरी तरह रोज
दवा टाइम से देने
शायद कोई न भी आ पाए
sundar rachana.
sandhya ji ko saadar sriddhanjali
jaane ke baad jinkee yaad aaye
ReplyDeletesamjho wo apnaa kaam kar gaye
sandhya ji ko saadar sriddhanjali
बहुत ही खूबसूरत रचना.....अवन्ती जी.....बधाई...
ReplyDeleteअभिलाषाएं अनंत अपार ...
तभी तो रचता है...रचनाकार.....
और लेता जन्म इंसान..
एक बार..नहीं..कई-कई बार.....
क्योंकि.....
अभिलाषा देवों की भी हुआ करती है