नव गीत का निर्माण
मैं प्रीत से भरे नव गीत का निर्माण करूँ
तुम अपने मन की मधुरता बिखरते रहो यूँ ही
मैं उस मधुरता से अपने गीतों में प्रेम भरूं
अपनी आँखों की चमक मुझ तक ऐसे ही पहुचने दो
समेट कर उसे ,उस से मैं शब्दों के लिए कुछ गहने गढ़ूं
तुम्हारे प्रेम की महक, जो घेर रही है मुझे चारों और से
इस से ही तो महकेगी मेरी ये बिना सुगंध की कविता
अभी मत उठो यहाँ से, रुको क्या तुम अब तक नहीं समझे ,
तुम्हारे होने से ही तो बह रही है मुझ में से छन्द और बंधों की सरिता
लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
तुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ
बहुत खूब !
ReplyDeleteसादर
लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
ReplyDeleteतुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ
....pyar ko samarpit sundar prempagi rachna.
poorn samarpan ....sundartaa ke saath
ReplyDeleteसमर्पित प्रेम की सुंदर भावाभिव्यक्ति..
ReplyDeleteभाव प्रधान रचना
ReplyDeletev7: स्वप्न से अनुराग कैसा........
लो तुम हो जाने को बेकरार इतना ,तो मैं कविता को पूर्ण करती हूँ
ReplyDeleteतुम्हारे होने से इसे लिख पाई हूँ सो इस का पूरा श्रेय तुम्हे समर्पित करती हूँ........ यही तो सम्पूर्ण प्रेम की परिभाषा है.....
निरंतर जी,विक्रम जी ,सुषमा जी ,कैलाश जी ,यशवंत जी ,कविता जी आप का खूब खूब आभार जो आप इस रचना को आप ने सराहा .....अपनी टिप्पणियाँ रखी .
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