Sunday 5 February 2012






क्या कहिये ऐसी हालत में कौन समझने वाला है 
सब की आँखों  पे  पर्दा है हर एक जुबां पर ताला है 

किस के आगे सर पटकें और चिल्लाये किस के आगे 
एक हाथ में छुपा है खंज़र ,   एक   से  जपते माला है 


करनी और कथनी में अंतर ,आसमाँ और ज़मीं का है 
कहते थे क्या क्या कर देगें,पर बस बातों   में  टाला है 





 (इस रचना की पहली पंक्ति किसी ब्लॉग पर मुशायरे में  ग़ज़ल लिखने
के लिए रखी गयी ,मैं ने कोशिश की पर क्यूकि मुझे ग़ज़ल के नियम पता नहीं 
है के कैसे लिखते है ,तो ये उस मुशायरे के नाकाबिल साबित हुई,यहाँ में इसे ग़ज़ल 
के रूप में नहीं सिर्फ अपनी एक रचना के रूप में रख रही हूँ )
(अवन्ती सिंह)

16 comments:

  1. har shakhsh yahee kar rahaa hai
    waqt kaa dastoor nibhaa rahaa hai
    chehre par chehraa chadhaa kar ghoom rahaa hai

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  2. किस के आगे सर पटकें और चिल्लाये किस के आगे
    एक हाथ में छुपा है खंज़र , एक से जपते माला है

    बिलकुल सही बात कही है आपने।

    सादर

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  3. किस के आगे सर पटकें और चिल्लाये किस के आगे
    एक हाथ में छुपा है खंज़र , एक से जपते माला है


    करनी और कथनी में अंतर ,आसमाँ और ज़मीं का है
    कहते थे क्या क्या कर देगें,पर बस बातों में टाला है


    Rajneton pr karara prhar kiya hai.....are bhai ye hain hi esi layak

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  4. अच्छा है..
    kalamdaan.blogspot.in

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  5. आपका प्रयास बेहतरीन है,चिंगारी भड़क रही है !

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  6. बेहतरीन प्रयास अवन्ती जी
    अच्छी रचना है..

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  7. बहुत अच्छे...
    गज़ल हो या गीत...
    भाव बेहतरीन है..
    शुभकामनाएँ.

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  8. हकीकत बयानी है।

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  9. सार्थक अभिवयक्ति......

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  10. कथनी और करनी में यदि अंतर न हो तब कुछ तो अच्छा होपाए पर ऐसा नहीं होता |बहुत सुन्दर बात कही है "
    कथनी और करनी में अंतर आसमां और जमीं का है |
    आशा

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  11. कोई नहीं जी निराश नहीं होते.....आपने बहुत अच्छा लिखा है शेरों में बहुत गहराई है......मेले झमेले से दूर ही रहे तो अच्छा है :-)

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  12. umda khayaal hain...badhai sweekar karen

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  13. ये तो वही वाला हिसाब है -दिन में माला जपत हैं ,रात हनत हैं गाय .बहुत अच्छी रचना है व्यंग्य प्रधान .

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  14. बात तो एकदम सही है. बधाई.

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