अबके आना तो चराग़ों की हंसी ले आना
लान की घास से थोड़ी सी नमी ले आना ----
होंट शीरीं के बहुत खुश्क हैं मुरझाए भी हैं
तुम पहाड़ों से कोई शोख नदी ले आना
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वक़्त पर मिल सके जो चीज़ वही काम की है
जो भी हो ज़हर या अक्सीर अभी ले आना
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मुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
किसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना
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आज वोह आएँगे खुश दिखने की सूरत कर लें
शब को बाज़ार से कुछ खंदालबी ले आना
खंदा लबी = मुस्कराहट
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( अखतर किदवई )
बहुत ही बेहतरीन रचना है ,हर पंक्ति गहरे और खुबसुरत अर्थ लिए है.....बधाई अखतर जी ,आप की रचनाओं से ब्लॉग की शोभा बढ़ जाती है.....
ReplyDeleteअख्तर साहब की इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ़ की जाय कम होगी...बहुत अच्छा लगा उन्हें पढना...
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
बहुत प्यारी रचना सांझा की आपने अवंति जी ...
ReplyDeleteशुक्रिया
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteखुबसूरत ग़ज़ल|
ReplyDeletesundar , behtarin rachanaha hai
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteबहुत लाजबाब प्रस्तुती .
ReplyDeleteMY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
बेहतरीन, पर इनके साथ खुद भी आ जाना..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए शुक्रिया।
bahut bahut hi sundar kriti h...dil ko chune wali...!!!
ReplyDeletekuch aise hi khoobsoorat krityon k liye dekhe mere blog ko-
www.poemsbyvaibhav.blogspot.in
www.abhivyaktiekchetna.blogspot.in
मुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
ReplyDeleteकिसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना
lajabab Awanti ji hr sher umda hai.
सराहनीय प्रयास, शुभकामनाएं
ReplyDeleteमुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
ReplyDeleteकिसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना ...
बहुत खूब ... ये प्यास भी क्या अजीब शे है ...
कमाल का शेर है ...