Friday, 3 February 2012




अबके आना तो चराग़ों की हंसी ले आना
 लान की घास से थोड़ी सी नमी ले आना
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होंट शीरीं के बहुत खुश्क हैं मुरझाए भी हैं
तुम पहाड़ों से कोई शोख नदी ले आना
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वक़्त पर मिल सके जो चीज़ वही काम की है
जो भी हो ज़हर या अक्सीर अभी ले आना
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मुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
किसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना
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आज वोह आएँगे खुश दिखने की सूरत कर लें
शब को बाज़ार से कुछ खंदालबी ले आना
    खंदा लबी = मुस्कराहट 
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       ( अखतर किदवई )

15 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना है ,हर पंक्ति गहरे और खुबसुरत अर्थ लिए है.....बधाई अखतर जी ,आप की रचनाओं से ब्लॉग की शोभा बढ़ जाती है.....

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  2. अख्तर साहब की इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ़ की जाय कम होगी...बहुत अच्छा लगा उन्हें पढना...

    नीरज

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  3. सुन्दर..
    kalamdaan.blogspot.in

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  4. बहुत प्यारी रचना सांझा की आपने अवंति जी ...

    शुक्रिया

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  5. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

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  6. खुबसूरत ग़ज़ल|

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  7. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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  8. बेहतरीन, पर इनके साथ खुद भी आ जाना..

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  9. खूबसूरत रचना।

    साझा करने के लिए शुक्रिया।

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  10. bahut bahut hi sundar kriti h...dil ko chune wali...!!!
    kuch aise hi khoobsoorat krityon k liye dekhe mere blog ko-
    www.poemsbyvaibhav.blogspot.in
    www.abhivyaktiekchetna.blogspot.in

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  11. मुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
    किसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना
    lajabab Awanti ji hr sher umda hai.

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  12. सराहनीय प्रयास, शुभकामनाएं

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  13. मुद्दतें गुजरी हैं शबखाने में साग़र में खनके
    किसी तौबा से मेरी प्यास कोई ले आना ...

    बहुत खूब ... ये प्यास भी क्या अजीब शे है ...
    कमाल का शेर है ...

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