Sunday, 23 October 2011

        अहसास

आज  मेरे नाती ने आकर , अपनी नाज़ुक मुलायम उँगलियों  से जब  छुआ  मेरे  चेहरे  को
 
याद आ गया वो जमाना मुझे, जब मेरी बेटी भी आकर मेरी गोदी में,मुझे ऐसे ही छुआ करती थी
 
और अपनी चुलबुली जुबां से न जाने क्या क्या बोलती थी,हँसती थी,मुस्कराती थी कली की तरह
 
जमाने  भर  की  खुशियाँ  बिखेर  देती  थी  मेरे घर के आंगन में,ऐसा  लगता  था  जैसे
 
बंद  कमरे  का  दरवाजा  खुले और   सूरज  अपनी  किरणों  से  भर  दे  कमरा  सारा 
 
महक उठता था संसार हमारा,और सारी दुनिया के रंज -ओ-गम  भुला देती  थी  उसकी  मासूम  हंसी
 
और खो जाते थे हम  अपनी  प्यारी  सी ,छोटी  सी  दुनिया  में, पुरे जहान  से   बेखबर    होके
 
लौट के आ गए वो सब पल दोबारा,जब मेरे नाती ने आकर अपनी नाजुक उँगलियों से छुआ मेरे चेहरे को 

( GHANSHYAM  SARVAIYA )

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