Wednesday, 28 December 2011

घुमती है जिंदगी

मुस्कराहट उधार की, ओढ़े  घुमती  है जिंदगी 
झूठ के आईने में सच   को  ढूँढती है   जिंदगी 

पाँव में छाले हजारों, दर्द से कराहती  है,और 
 रोजाना  ही  नए नृत्य में झूमती है   जिंदगी 

दिल की गहराई में सन्नाटा है और  तन्हाई  है 
और बन कर महफिले बहार घुमती है जिंदगी 

सांस थम जाये तो आ जाये  इस   को  भी करार 
पूरी उम्र से यूँ ही बेचैन ,बेकरार घुमती है जिंदगी  

10 comments:

  1. kabhee rulaaye kabhee hansaaye
    nirantar nayee ichhayein jagaaye
    yahee to hai zindgee

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  2. सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

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  3. अवन्ति जी, आप मेरे ब्लॉग पर आयीं, स्वागत है, आपकी कविता भी बहुत सुंदर है...जिंदगी ऐसी है तभी तो खूबसूरत है...

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  4. बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति, आपको नव-वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाये !

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  5. मुस्कराहट उधार की, ओढ़े घुमती है जिंदगी
    झूठ के आईने में सच को ढूँढती है जिंदगी

    behtareen panktiyaN

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  6. रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।

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  7. खुबसूरत रचना.....नववर्ष की शुभकामनायें.....

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  8. आप सब का दिल से धन्यवाद .....आप सब को भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ........

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  9. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....

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  10. वाह अवन्तिजी...बहुत ही सुन्दर...कशिश भरी रचना

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