Sunday, 25 September 2011

कभी कोई कविता






कभी  कोई  कविता  जन्म  लेने  को  कितना  अकुलाति है!
कभी कोई कविता, सोच की गलियों  मे    ही  खो  जाती है!!


कभी कोई कविता,विचारों की तेज धार संग बह आती है!
कभी कोई कविता जीवन का सार,सम्पुर्ण  कह जाती है!!


कभी  कोई  चपला कविता,  देखो   तो  कैसे  इठलाती है!
कभी कोई मुस्काती कविता,मधुर फ़साने कह जाती है!!


कभी  कोई  वीरहनी  कविता,अश्क   आँख  मे  दे  जाती है!
कभी कोई प्रिया सी कविता,ह्रदय को झंकृत  कर जाती है!!


कभी कोई अति वाचक कविता,जाने क्या क्या  कह  जाती है!
कोई  शांत   मौनी   सी   कविता,  यूँ   ही  चुप से रह जाती है!!


कभी   कोई   घर-भेदी  कविता,  भेद  सभी  से  कह  जाती  है!
कभी कोई अति ग्यानि कविता, ग्यान बघार कर रह जाती है!!


कभी कोई सोती सी कविता,कुछ कहते  कहते  सो  जाती  है!
चुगलखोर  सी  कविता  कोई, चुगली  कान   मे पो  जाती  है!!


कभी  कोई  मेघा  सी  कविता,  रिमझिम   बूंदे   बरसाती  है!
ज्वालामुखी    सी कविता  कोई,  लावे  को  फैला   जाती  है!!


कभी कोई मोटी सी कविता,सम्पुर्ण पृष्ट ही  खा  जाती है!
और  कोई  नन्ही  सी  कविता  कोने  मे  ही  आ  जाती है!!


कविताओं  के  रूप है  कितने  ये  अब   तक मालूम नहीं!
हर कविता नव जीवन लेकर, नई  कहानी  कह जाती है!!



(अवन्ती सिंह)

2 comments:

  1. ji haan main ne isi kavita ke baare me kaha tha ke mujhe ye bhi kafi pasnd hai

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  2. Perfect poem for any poet to relate himself with.

    Nice poem and nice picture too :)

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