हे सृष्टि के रचेता हे जग के पालनहार
आई मैं तेरे द्वार, विनय करो स्वीकार
स्द्बुधि प्रदान करके, अहंगकार से करो पार
करूँ जब भी कार्य कोई विवेक हो, हो शुद्ध विचार
क्षण भंगुर तन ये मेरा जाए ना अब बेकार
अतिश्त्रु भी यदि आए, करुणा, स्नेह पाए
समस्त सृष्टि के प्रति हो मन मे स्नेह अपार
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