Sunday 25 September 2011

बहारों के आने मे वक़्त तो लगता है
खिज़ाओं के जाने मे वक़्त तो लगता है
मगर अब तो ज़िंदगी गुलज़ार है मेरी
सारे जहाँ की खुशियाँ ताबेदार है मेरी
ना जाए यह खुशिया ,यहीं थम सी जाए
अब तो यही चाहत,लगातार है मेरी
मगर यह है चाहत ,नियम तो नही यह
बहारों को एक दिन तो जाना ही होगा
खिज़ाओं को वापस तो आना ही होगा
यह चक्र तो यूँ ही चलता है सदा
एक आता है तो एक लेता है विदा
तो फिर क्यू ना खुद को नियती चक्र के लायक बना लूँ मैं
दुख और सुख के मध्य की अवस्था को पा लूँ मैं

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