Sunday, 25 September 2011

ये वृक्ष गवाह रहा है कुछ बीती यादों का ,शिकवे/ शिकायतों का कसमे और वादों का
बचपन   की अटखेलिया   भी   इसने    देखी   है ,   देखी   है   जवानी  की दहलीज भी


देखे     है   इसने     कई   दशहरे,   दीवाली   और   देखी   है    इसने   कई   तीज   भी
देखा     है   रूठना    और    मनाना   भी    और   देखी   है    पवित्र   सच्ची   प्रीत   भी


इसके नीचे बैठ कर कई राही सुस्ताये है,बच्चे घर घर खेले है,रोए है   खिलखिलाए है
आकर   कभी   साधु   जनों   ने  रातों को अलख जगाए है,कभी पंछी आकर इस पर
चहके है , घरोंदे बनाए है .......


  मन   कहता   है  आज   अभी   यहीं   पर   धुनि   रमाऊं   मैं
मूंद के   आँखे ,  ध्यान   लगा   सर्वेश्वर   मे    खो   जाऊं    मैं

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