Sunday, 25 September 2011

मैं तो बहुत कम लिखती हूँ,पर कविताए दिमाग़ मे कभी भी अंकुरित होने लगती है
मेरे मन मे ये विचार कई बार आता है के जब मैं ही कविताओं के असमय प्रकट
होने से परेशानी मे पड़ जाती हूँ तो फिर उनका क्या हाल होता होगा जो निरन्तर
लिखते रहते है,उन के हालत की कल्पना करके मैं ने ये कविता लिखी है
इस कविता मे लेखिका अपनी कविताओं को बेवक्त उसके दिमाग़ मे ना आने की
हिदायत दे रही है,और उनके बेवक्त आने के कारण होने वाली परेशानी का
ब्यान कर रही है
कविता का शीर्षक है:- सख़्त मना है.

बाद शाम के,मेरे घर मे आना सख़्त मना है
ग़ज़लो और कविताओ तुम को गाना सख़्त मना है
बाद शाम के तो मैं गीत पिया-मिलन के गाने लगती हूँ
आँखे राह पर होती है,श्र्न्गार सजाने लगती हूँ
लिखने मे कविता देर हुई ये बहाना बनाना सख़्त मना है!
बाद शाम के, मन-पंछी उड़ उड़ खिड़की पर जाता है
आएगे वो अब आएगे,ये मधुर संदेश दोहराता है
इस संदेश को सुनकर भी, ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के........
बाद शाम के कान हर एक आहट सुनते रहते है
पिया-मिलन नज़दीक है,पल पल ये मुझ से कहते है
उस आहट को सुन कर भी,ना सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम के.........
बाद शाम के जब साहब थक कर वापस आते है
हम भी आख़िर इंसान है,हंसते है मुस्काते है
उस हास्य-विनोद का,किसी को भी सुन पाना सख़्त मना है
बाद शाम कें एर घर मे आना सख़्त मना है.

1 comment:

  1. bahut hi sundar kavita hai ye,aap ki sabhi kavitaaon me semujhe ye aur kavita kitne prkaar ki....wo wali kavita kafi pasnd aae..

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